गोरक्षभूमि गोरखपुर की पावन धरा पर, जब वसंत पंचमी की सुवासित वेला में प्रकृति स्वयं पीताम्बर धारण कर नव सृजन का उद्घोष कर रही थी, उसी समय कुछ संवेदनशील हृदयों में यह विचार अंकुरित हुआ कि ज्ञान, सेवा और संस्कार के त्रिवेणी संगम से एक ऐसा मंच स्थापित किया जाए, जो युवाओं को केवल शिक्षा ही नहीं, अपितु प्रेरणा, प्रोत्साहन और पहचान भी प्रदान कर सके। इसी दिव्य संकल्प की परिणति थी ‘युवा चेतना समिति’ का गठन, जिसकी औपचारिक स्थापना वर्ष 1990 में हुई।
युवा चेतना समिति : एक युगद्रष्टा प्रयास की रजत जयंती यात्रा
“जहाँ सपनों को स्वर मिले, जहाँ संकल्पों को दिशा— वहीं जन्म लेती है चेतना की ज्योति!”
गोरक्षभूमि गोरखपुर की पावन धरा पर, जब वसंत पंचमी की सुवासित वेला में प्रकृति स्वयं पीताम्बर धारण कर नव सृजन का उद्घोष कर रही थी, उसी समय कुछ संवेदनशील हृदयों में यह विचार अंकुरित हुआ कि ज्ञान, सेवा और संस्कार के त्रिवेणी संगम से एक ऐसा मंच स्थापित किया जाए, जो युवाओं को केवल शिक्षा ही नहीं, अपितु प्रेरणा, प्रोत्साहन और पहचान भी प्रदान कर सके। इसी दिव्य संकल्प की परिणति थी ‘युवा चेतना समिति’ का गठन, जिसकी औपचारिक स्थापना वर्ष 1990 में हुई।
गठन से गति तक की यात्रा
दीक्षांत की शून्यता में स्वर्णिम पहल
वर्ष 1990 के दशक में गोरखपुर विश्वविद्यालय दीक्षांत समारोह के अभाव से जूझ रहा था। वर्षों से मेधावी छात्र-छात्राएं अपने स्वर्ण पदक से वंचित रह जा रहे थे। ऐसी विषम स्थिति मान्धाता सिंह के मन में सर्वोच्च प्राप्त करने वाले को उत्साहित करने और सम्मानित करने हेतु अपने मित्रों,शुभचिंतकों के साथ मिलकर युवा चेतना समिति की स्थापना की।युवा चेतना समिति ने अपने दायित्व को पहचाना और यह निर्णय लिया कि विश्वविद्यालय के विविध संकायों के सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को समिति स्वयं स्वर्ण पदक से सम्मानित करेगी, ताकि वे न केवल प्रोत्साहित हों, बल्कि उन्हें यह आभास हो कि समाज उनकी प्रतिभा का मूल्य जानता है।
यह विचार मात्र कल्पना नहीं रहा, वरन् एक संकल्प बनकर साकार हुआ। 18 फरवरी 1991 को समिति का प्रथम स्वर्ण पदक सम्मान समारोह विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन में सम्पन्न हुआ। अध्यक्षता की तत्कालीन कुलपति प्रो.भूमि देव ने तथा मुख्य अतिथि रहे लोक निर्माण राज्य मंत्री माननीय शारदानंद अंचल।
संस्थापक स्तंभ और प्रेरणास्रोत
इस रचनात्मक यज्ञ में आहुति देने वाले प्रेरक व्यक्तित्वों में प्रमुख थे, प्रो. शिवशरण दास, डॉ. विमल कुमार मोदी, डॉ. पी. पी. गुप्ता, डॉ. धर्मव्रत तिवारी, इंजीनियर ए. पी. श्रीवास्तव और ई. रामकुमार सिंह। संस्था की प्रथम कार्यकारिणी में अध्यक्ष मांधाता, सचिव संजय पांडेय, संयुक्त सचिव चंद्रभान सिंह, उपाध्यक्ष मनोज पांडेय, कोषाध्यक्ष मनोज कुमार सिंह एवं सदस्यगण विजय आनंद सिंह ‘कक्कू’, ध्रुव कुमार श्रीवास्तव, शैलेश अस्थाना, हर्ष कुमार सिंहा और संजय कन्नौजिया शामिल रहे।
अलंकरण की परंपरा में विस्तार
समिति ने 1992 से न केवल गोरखपुर विश्वविद्यालय, बल्कि मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज (अब विश्वविद्यालय) एवं बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मेधावियों को भी इस स्वर्णिम परंपरा में सम्मिलित किया। यह समावेशन समिति के दृष्टिकोण की व्यापकता का प्रमाण है, जो केवल सीमित दायरे में नहीं, अपितु पूरे पूर्वांचल में प्रतिभाओं को आलोकित करना चाहता था।
फिराक सम्मान : साहित्य को अर्पित एक श्रद्धांजलि
साहित्यिक चेतना को सम्मानित करने हेतु समिति ने वर्ष 1994 में ‘फिराक सम्मान’ की शुरुआत की, जिसकी प्रेरणा तत्कालीन कुलपति प्रो. उत्सव पाठक से मिली। यह सम्मान बारी-बारी से हिंदी और उर्दू के प्रतिष्ठित साहित्यकारों को प्रदान किया जाता है। आज तक इस अलंकरण से विभूषित होने वालों में शामिल हैं— महेश अश्क, राजेश शर्मा, ज़फ़र गोरखपुरी, डॉ. संजय चतुर्वेदी, प्रो. शहरयार, आलोक धन्वा, कैफ़ी आज़मी, मख़मूर शहीदी, स्वप्निल श्रीवास्तव, बेकल उत्साही, डॉ. अनामिका, मलिकज़ादा मंज़ूर, डॉ. हरिओम, अनवर जलालपुरी और डॉ. बोधिसत्व।
इस सम्मान की गरिमा को सुदृढ़ करने वाले निर्णायक मंडल में सम्मिलित रहे— आचार्य रामचंद्र तिवारी, प्रो. परमानंद श्रीवास्तव, डॉ. रामदेव शुक्ल, डॉ. अरविंद त्रिपाठी, प्रो. सदानंद शाही और डॉ. अनिल राय।
सम्मान की सीमाओं से परे— समर्पण का विस्तार
समिति ने अपने कार्यों को केवल शिक्षा और साहित्य तक सीमित न रखते हुए समाज के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तित्वों को उनके जीवनपर्यंत योगदान हेतु ‘लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित करने की परंपरा भी आरंभ की।
खेल क्षेत्र के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों, पत्रकारिता में दीर्घकालीन योगदान देने वाले वरिष्ठ पत्रकारों, जन-सेवा में समर्पित अधिवक्ताओं और चिकित्सकों, रोजगार सृजन करने वाले उद्योगपतियों को ‘श्रमवीर सम्मान’, तथा सामाजिक कार्यों में संलग्न व्यक्तियों को ‘कर्मवीर सम्मान’ प्रदान कर समिति ने अपनी प्रतिबद्धता को कर्म की कसौटी पर सदा खरा उतारा है।
रजत जयंती की शुभ वेला में
आज जब समिति अपनी रचनात्मक यात्रा की रजत जयंती मना रही है, तब यह केवल एक कालखंड का उत्सव नहीं है, यह उस विचार, उस चेतना, उस निस्वार्थ साधना का उत्सव है, जिसने पूर्वांचल के असंख्य युवाओं को प्रेरित किया, उन्हें उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न दिखाया और समाज को यह विश्वास दिलाया कि प्रतिभा, परिश्रम और परमार्थ का समन्वय यदि किसी संस्था में है, तो वह है— युवा चेतना समिति।
जहां दीप बुझते हैं, वहां भी यह एक मशाल है
आज यह संस्था केवल कार्यक्रम नहीं करती, बल्कि व्यक्तित्वों को गढ़ती है। यह मंच नहीं, बल्कि वह संवेदनशील चित्त है, जो हर उभरती प्रतिभा में संभावनाओं की चमक देख लेता है और उन्हें उड़ान के लिए आकाश सौंपता है।
“यह समिति केवल एक संस्था नहीं, बल्कि पूर्वांचल की आत्मा की आवाज़ है—
सतत प्रवाहित, सजीव और संकल्पित!”
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